तसव्वुर का दर्पण
तसव्वुर का दर्पण
एक गहरी दिल को झकझोरती आवाज
गूँजी पश्चिम दिशा के एक कोने से..!
चलो मेरे संग एक एसी दुनिया में
जहाँ झुके सर मेरा और तू खुदा बन जाए,
मैं सजदा करूँ हाथ उठाए और तू मुझे मिल जाए
कौन है ये देवदूत सा मेरा दीवाना!
ख़्वाब है या हकीकत जानूं ना
आँखें मूँदे एक गोधुली शाम के
पहलू में बैठकर मेरे मखमली तसव्वुर में
एक सराबोर बादल सा साया
उतर आया मेरे मन आँगन..!
एक संदली महक समीर में घुल गई
मैं बुत सी निहारती उसके कदमों की
आहट के पीछे बह निकली..!
धड़कन रूनझुन पायल सी
बेतहाशा बजती मुझे मोम सी पिघला रही,
समुंदर तट की गीली रेत पर घुटनों के बल बैठकर
मुझे मुझसे मांगते उसकी पलकों पे
अहसासों की बूँद ठहर गई..!
डूबता सूरज उसक
े पाक इश्क़ की
गवाही देते केसरिया होते और निखर गया,
सिल्की शिफॉन सी झीनी चुनरी सर पर
सज गई मेरे हौले हौले बयार में बहती..!
वो खुशी से झूम उठा जैसे
मुझको पा कर कायनात पा ली हो
मैं पूछती रही कहो न कौन हो तुम..!
फिर से वो गहरी कटीली आवाज़
मेरे कानों में गुनगुना गई
तुम्हारी कल्पनाओं में बसा संसार हूँ..!
हकीकत से परे वो साया कितना
लुभावना था उस जादुई संसार में डूबकर
अहसासों को सहलाना दिल में गुदगुदी जगा गया..!
दिल के भीतर एक ख़्वाबों का जहाँ बसता है
जैसे हिमखंड के भीतर कोई दावानल,
उसमें डूबकी लगाकर छूते ही पिघलने लगते है
मनचाही कल्पनाओं के पर्वत बस कंटीली ज़िंदगी में
फूलों सा अहसास देने के लिए
काफ़ी है इतना ही तसव्वुर का दर्पण।