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Bhavna Thaker

Classics

4  

Bhavna Thaker

Classics

तृषित मन

तृषित मन

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तृषित मन है कोरा तन है होली के हर रंग है फ़िके"

प्रीत मोहे पलाश से मन रंगीन सपनों की खान

सैयां मेरे नीरस ठहरे होली खेले ना फाग।


पथ निहारें नैंना नम है कोरे गाल की किरकिरी में

अश्रु की तस्वीरें छलके 

पिचकारी भरी पुलक रंग की 

उर में भडभड जलती ज्वाला होली सी जल जाए काया।


पिघल रहे अरमान अधूरे साजन का सर क्यूँ ना ठनके

हर सखियाँ साथी संग खेले मोरा आँगन बिरहा झेले।


गुजिया भांग का नशा है फ़िका उन आँखों के आगे 

तृषित तन है मन बुलबुल सा बिन साजन के कुछ ना भाए

भरी जवानी कोरी बीते रंगों का उत्सव यूँ जीते।

 

पतझड़ का एक मौसम जैसे बिन बादल बरसात को तरसे

बिन साजन के कैसे खेलूँ होली के हर रंग है फ़िके।


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