Er. HIMANSHU BADONI 'DAYANIDHI'

Abstract

4  

Er. HIMANSHU BADONI 'DAYANIDHI'

Abstract

तरह-तरह के रंग

तरह-तरह के रंग

1 min
343


ऋतुराज के आने के बाद ही, आए यह फागुन के संग।

ख़ूब सराबोर कर दे सबको, लगाकर तरह-तरह के रंग।


पुत्र प्रह्लाद को राजा ने दिया था, घनघोर मृत्यु का दंड।

हरि नाम से वह झुंझलाया था, लग रहा था पूरा प्रचंड।

खंबा देख बोला अधर्मी, करेगा हर वस्तु को खंड-खंड।

नरसिंह रूप में आ गए प्रभु, तोड़ने को पापी का घमंड।


उसे आंधियां भी न छू सके, जो रहे प्रभु भक्ति में मलंग।

षड्यंत्र न पास उसके आए, राह दिखाती है दिव्य तरंग।


इतने से भी जो दिल न भरा, राजा ने दुष्ट का रूप धरा।

सांपों से भरे कक्ष में फेंका, किन्तु वहां हरि पुत्र न मरा।

बैठाया होलिका की गोद में, अधर्मी हंसे झूठे प्रमोद में।

यज्ञ की आग जल उठी, राक्षसी संपूर्ण भाग जल उठी।


जो साधना पर रहे अटल, स्वयं प्रभु रहते हैं उनके संग।

धर्म की यह महिमा देखकर, अधर्म तो रह जाता है दंग।


होली का दिन होता है रंगीला, रंगमत हो सबका जिया।

शक्कर पारे संग में गुजिया, नमक पारे संग में भुजिया।

इधर उधर से गिरते हम पर, सब रंगों से भरपूर गुब्बारे।

घरों से ही बरसने लगते हैं, ये असंख्य पानी के फव्वारे।


नौजवान मस्ती में घूमें दिनभर, जैसे गगन में उड़े पतंग।

न नशा मिलाओ इसमें, नहीं तो पर्व का रंग होगा भंग।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract