रक्षा का बंधन
रक्षा का बंधन
सावन गुज़र जाने के बाद, एक प्यारा त्यौहार आता है।
रिश्तों को रिश्तों का महत्त्व, ये बारंबार सिखा जाता है।
भाई की चिंता, बहन का आदर, सब कुछ रहता इसमें।
सुशील, शालीन, प्रगाढ़ प्रेम, निरंतरता से बहता इसमें।
घर का कोना-कोना महके, ज्यों सर्वस्व फैला हो चंदन।
भाई-बहन की प्रतिज्ञा से, मज़बूत होता रक्षा का बंधन।
बचपन बीतता मस्ती में, बेफिक्र गुजरते दिन और रात।
संगी साथी भी साथ रहते हैं, चिन्ता की नहीं कोई बात।
हर दुविधा की घड़ी में, भाइयों को बहनें सहारा देती हैं।
हिचकोले खाती नाव को, एक सुरक्षित किनारा देती हैं।
भाई-बहन न रहें विमुख, चाहे कितनी हो जाए अनबन।
भाई-बहन की प्रतिज्ञा से, मज़बूत होता रक्षा का बंधन।
ज़िम्मेदारी का एहसाह हो, जब किशोरावस्था आती है।
टूटी-फूटी सारी बातों से, समझ सारी व्यवस्था आती है।
जब बहन संकट में हो, तब भाई रक्षक बनकर आते हैं।
हर हानि, विपदा व क्षय हेतु, ये भक्षक बनकर आते हैं।
यूॅं सारे भ्राता ढाल बन जाते, सुनते ही बहनों का क्रंदन।
भाई-बहन की प्रतिज्ञा से, मज़बूत होता रक्षा का बंधन।
जो सारे भाई बलशाली हैं, तो फिर क्यों बहनें सहमीं हैं।
सारे भाई होते हैं रक्षक, यह सबसे बड़ी गलतफहमी है।
आज उचित समय आया है, बहनें स्वावलंब बनाऍं हम।
स्वयं की रक्षा की ज्योति को, इनके मन में जलाऍं हम।
इन्हीं अनमोल उपहारों को, न खरीद सकेगा कोई धन।
भाई-बहन की प्रतिज्ञा से, मज़बूत होता रक्षा का बंधन।
