बसंत कहलाए
बसंत कहलाए
सूर्योदय होते ही ज्यों, खग कोई मीठा गीत सुनाए।
त्यों जीव का तन-मन, उत्साह-उमंग से भर जाए।।
जब सूर्य के तेज से, लालिमा नभ में बिखरने लगे।
अनूठा लगे ये दृश्य, धरा का सौंदर्य निखरने लगे।।
"जब समृद्धि संदेश लिये, स्वयं प्रकृति द्वार तक आए।
तब समझो आयी वह ऋतु, जो यहां बसंत कहलाए।।"
सजने लगे फूलों का तन, जो खिलें सभी कलियां।
ज्यों बिखरे इनकी सुगंध, त्यों महके सारी गलियां।।
चले प्रकृति की सवारी, पतझड़ से यौवन की ओर।
शीतल रात्रि बीत गई, आई ऊर्जा से भरी नव भोर।।
"जब फूल अपनी महक से, धरा को प्रतिदिन नहलाए।
तब समझो आयी वह ऋतु, जो यहां बसंत कहलाए।।"
ज्यों प्रकृति का कोष, कलियों का संचय करता है।
त्यों भंवरा डाल-डाल से, मधुर का चयन करता है।।
सब रचनाकारों को यहां, बसंत ऋतु बहुत भाती है।
नव विचार आते मन में, कृतियां सांस ले पाती हैं।।
"तभी तो वे सभी कृतियां, हमें अपना मुरीद बना जाएं।
तब समझो आयी वह ऋतु, जो यहां बसंत कहलाए।।"
