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Er. HIMANSHU BADONI 'DAYANIDHI'

Others

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Er. HIMANSHU BADONI 'DAYANIDHI'

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त्रिलोकनाथ

त्रिलोकनाथ

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है केश बीच में गंगा समायी, शीष चन्द्र आभा अतिभायी।

इनके गले सजी है सर्पमाला, सदा मुख पे दिव्य उजाला।

बांह में बंधी रुद्राक्ष की माला, शंभू सारे जग से निराला।

बाघंबर पहने रहे ध्यान मगन, ये कैलाश पर रहने वाला।


कृपा को इनकी तरसे, अधर्मी, लोभी, कपटी व कपूत।

तन में मली है राख-भभूत, चलते संग इनके नाथ-भूत।

हमें त्रिलोकनाथ का संग-साथ, है नित देता यह संदेश।

प्रेम से जन्मे कार्तिकेय, क्रोध से निर्मित होते हैं गणेश।


है शिव भक्ति में अद्भुत शक्ति, जिससे मिले पूरा सम्मान।

दो स्वरूप इनके विख्यात, एक भैरव और दूजे हनुमान।

नाथ भैरव ने आवेश में आकर, काटे ब्रह्मा के पंचशीष।

बने हनुमत, प्रभु राम भक्त, पाया अनुज जैसा आशीष।


शिव सौम्य व्यवहार के चलते, हमेशा मीठी वाणी बोलें।

क्रोध इनका है प्रलयंकारी, ज्यों तीसरी आंख ये खोलें।

जानें इनका बल सृष्टि सारी, जिसके सामने बुराई हारी।

आठों पहर-सबकी ख़बर, रखें भोलेनाथ कल्याणकारी।


समुद्रमंथन से उपजा संकट, शिव ने पल में हर डाला।

अमृत बांचा, विष पी लिया, कंठ को नीला कर डाला।

सत्य तथा पुण्य के पथ पर, भोलेनाथ बिछा देते फूल।

असत्य व पाप का नाश हैं करते, थामे अपना त्रिशूल।



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