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Er. HIMANSHU BADONI 'DAYANIDHI'

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Er. HIMANSHU BADONI 'DAYANIDHI'

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बसंत आज तू भी

बसंत आज तू भी

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आंखें तो खोल, ज़रा उठकर देख, हे बसंत आज तू भी,

पुराना बिसरा स्वरूप वो तेरा, पलभर में नया हो गया।

लोग यहां हर घड़ी, अपने अनंत दुःख की बातें करते हैं,

तू आनंद संग में लाया, तू सुख की कोई वजह हो गया।


घनघोर पीड़ा जो असमय, यूं हमारा पथ है रोकने लगी,

पल में निवारी सब पीड़ा, तू सब दर्दों की दवा हो गया।

समय रेत बनकर निकल रहा, जीवन की ढ़ीली मुट्ठी से,

तू इस जीवन के सफ़र का, अद्भुत कोई लम्हा हो गया।


ठिठुरती गात, झरते वृक्ष के पात, सिकुड़ती कायनात,

मृत गात भी खिल उठी, जादू तेरा सब जगह हो गया।

इच्छा के मार्ग हैं सूने, फिर भी हमें हौंसला दिया तूने, 

शीत ने दिखायी क्रूरता, तू परमेश्वर की दया हो गया।


ये घोर पर्यावरण प्रदूषण, जैसे हो असुर खर व दूषण,

इस धुएं के देश में अब तेरा, है आगमन मना हो गया।

लोक साहित्य का दर्शन अब, अति-दुर्लभ हो चला है,

लेख, निबंध, काव्य रूप में, कलम से तू बयां हो गया।



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