कटी पतंग
कटी पतंग
बड़ी उदास दिखी मुझे, पेड़ पे लटकी कटी पतंग।
कहा एकांत है ये सफर मेरा, न राही है कोई संग।
जो कारीगर थामेंगे, तो नया स्वरूप अपना लूंगी।
जब पतंगबाज़ साधेंगे, अपेक्षाओं से ऊंचा उडूंगी।
आज बच्चे व युवा तो, मोबाइल के नशे में मलंग।
बाहर आने की बात तो दूर, वो छोड़ते नहीं पलंग।
ज्यों खिंचने लगेगा मांझा, त्यों दिशा को बदलूंगी।
खेल-खेल में पतंगबाज़ को, परम आनंद मैं दूंगी।
मकर संक्रांति में भी नहीं दिखे, वही पुरानी उमंग।
लगे क्रोध, लोभ व ईर्ष्या ने, किया मानव को तंग।
मदमस्त हवा के संग-संग मैं, दूर गगन में झूमूंगी।
पतंगबाज़ी को जीतकर, नित नए आयाम चूमूंगी।