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Er. HIMANSHU BADONI

Others

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Er. HIMANSHU BADONI

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कटी पतंग

कटी पतंग

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बड़ी उदास दिखी मुझे, पेड़ पे लटकी कटी पतंग।

कहा एकांत है ये सफर मेरा, न राही है कोई संग।

जो कारीगर थामेंगे, तो नया स्वरूप अपना लूंगी।

जब पतंगबाज़ साधेंगे, अपेक्षाओं से ऊंचा उडूंगी।


आज बच्चे व युवा तो, मोबाइल के नशे में मलंग।

बाहर आने की बात तो दूर, वो छोड़ते नहीं पलंग।

ज्यों खिंचने लगेगा मांझा, त्यों दिशा को बदलूंगी।

खेल-खेल में पतंगबाज़ को, परम आनंद मैं दूंगी।


मकर संक्रांति में भी नहीं दिखे, वही पुरानी उमंग।

लगे क्रोध, लोभ व ईर्ष्या ने, किया मानव को तंग।

मदमस्त हवा के संग-संग मैं, दूर गगन में झूमूंगी।

पतंगबाज़ी को जीतकर, नित नए आयाम चूमूंगी।


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