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Rekha Maity

Tragedy Inspirational Others

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Rekha Maity

Tragedy Inspirational Others

त्रासदी २०२०

त्रासदी २०२०

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किसकी नज़र लग गयी 

इस खूबसूरत दुनिया को

आखिर कौन ईर्ष्या में 

जल रहा है ?

इसकी संपन्नता देखकर 

न है और न न होगा 

इस सौर मंडल में 

कोई दूसरा ग्रह 

इसके टक्कर का

प्रकृति और मनुष्य का 

हरा-भरा संसार है। 

पर आज ये व्यथित क्यों है? 

किसकी गलती की सज़ा 

भुगत रही है यह धरा ।


शून्य से बुलंदी तक 

आग से मशीनों तक 

धरती से चांद तक

कामयाबी की सीढ़ियाँ 

चढ़ता रहा मानव 

स्वयं की उन्नति 

प्रकृति की दुर्गति 

ये है

मानव की सफलता का रहस्य 

बस करते जा रहा है 

विज्ञान -तकनीकी से खिलवाड़ 

सोचा ना कोई परिणाम।


आज आँखों के समक्ष

देख रहा है मानव 

स्वयं का विनाश 

विकास के नाम पर 

जो तूने बोया 

उसी का फल खा रहा है। 

प्रयोग करते -करते 

ये क्या प्राणघाती जीव बना दिया 

जिसका कोई तोड़ नहीं मिल पाया। 

 

इंसानियत को दांव पर लगाकर 

मौत का गंदा खेल जारी है ।

वैज्ञानिक असफल 

सब कुछ हार रहा है इंसान 

जीवनदायी धरती 

आज मृत्यु का तांडव 

देखने को मजबूर है ।

 

लाशों पर लाशें बिछ रही हैं 

कितनों को जलाऐं कितनों को दफनाए

कैसे बचाए जीवन 

उधेड़बुन में फंसी सबकी सोच ।

सड़कें बाजार मुहल्ला 

शोर शराबा गुम है 

हर कोने में 

सन्नाटे और खामोशी का ही शोर है ।


होली दीवाली ईद 

जन्मदिन हो या विवाह 

अकेले ही खुश 

होने के लिए मजबूर हैं। 

आज क्या परिस्थिति है 

घर के अंदर कैद हैं 

दोस्तों और परिजनों से दूर 

अकेले रह गए हैं ।

कैसी बीमारी है ये 

न प्यार की छुअन मिले

न कोई गले लगा के 

हिम्मत बंधाए।

चाहे खुशी का समारोह हो 

चाहे शोक के पल 

कोई पास आता ही नहीं।

समय उलट-पलट गया 

दोस्त परिवार के साथ 

फुर्सत के पल और 

छुट्टियों की राह देखने वालों

अकेले समय बिताना पड़ा। 

बाजार उजड़ गए, घर बस गए ।

ज़िंदा रहने के लिए कमाना छोड़ दिए। 

प्लास्टिक कचरे के ढेर से 

सुरक्षा कवच बन गए। 

आक्सीजन मुफ्त थी हवा में 

जिंदा रखने के लिये 

खरीदने पड़ गए।

मौत से जीतने के लिए 

रोजगार से हार गए।


इस जीव ने क्या 

जहर मिलाया 

लाशों की कतार लग गयी ।

ना श्मशान में 

ना कब्रिस्तान में 

जगह खाली नहीं है ।

जलाए कैसे दफनाए कैसे 

लकड़ियाँ ताबूत 

सबकी कमी हो गई ।

किसी के बच्चे किसी के माता-पिता 

और कुछ के 

 परिवार ही उजड़ गए ।

ऐसी किस्मत लाशों की 

अंतिम संस्कार 

नाममात्र के ही रह गए।


केवल शोक और मातम 

पसरा हुआ है।

कोई बीमारी के मार से 

कोई आर्थिक तंगी से 

कोई अपनो के बिछड़ने के दर्द से 

पल -पल मर रहा है। 

सन्नाटों की खामोशी में 

 तीक्ष्ण चीखें 

कानों को भेद रही है।

मदद के लिए इंसान 

त्राहि- त्राहि कर रहा है।


संकट की इस घड़ी में 

वीर सेनानियों जैसे 

डाक्टर नर्स पुलिस 

स्वास्थ्य एवं सफाई कर्मचारी

न जाने कितने लोग 

जान हथेली पर लेकर 

कोरोना से जंग लड़ रहे हैं।

स्कूल कॉलेज बंद हो गए 

शिक्षक रूके नहीं 

घर को ही कक्षा बना डाला।

उनको कैसे भूल गए 

जिन्होंने घर से निकलने दिया नहीं 

जरुरत का सारा सामान 

घर पहुँचा दिया 


कुछ कालाबाजारियों ने 

मानवता का हनन कर डाला।

आक्सीजन, राशन ,दवाइयों की 

ऊँची कीमत लगाई।

लोगों ने ऐसे भी

जान गंवाई। 


किसकी ये घिनौनी चाल है ?

दूसरों के लिए मृत्यु और

स्वयं के लिए ढाल है।

कोशिश तू भी कर

हिम्मत हम नहीं हारेंगे

तेरे वजूद को 

मिटा के रहेंगे।

हमारा प्रयत्न सफल हो रहा है। 

तेरे आघात का तोड़ 

हमने निकाला है।

धीरे -धीरे ही सही 

हमारी लड़ाई चलेगी।

तेरी नहीं 

हमारी जीत सुनिश्चित होगी।



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