ईश्वर की संरचना " माँ"
ईश्वर की संरचना " माँ"
निशब्द रह जाती हूँ
अक्षरों का ढेर
कहीं खो जाता है ।
करोड़ों भाषाएँ भी
अधूरी रह जाती हैं ।
किसी शब्दकोष़ में
इसकी परिभाषा नहीं ।
माँ ऐसी होती है
जिसकी कोई
परिसीमा नहीं होती।
ईश्वर की सवोर्तम रचना ,
धरती पर उनका है प्रतिरूप ,
क्यों ईश्वर को ढूँढता इधर- उधर ,
हर घर में है उसका स्वरूप ।
परमात्मा के कंधों पर था ,
सारे ब्रह्मांड का कार्यभार ,
कैसे और क्या क्या संभाले ,
ये करने लगे विचार ।
अकेले कैसे सबकी जिम्मेदारी संभालू ,
सबको कैसे खुशियाँ दूँ ,
कैसे उनके दुःख दर्द हर लूँ ,
असमंजस में फंसा भगवान ।
एक उपाय सूझा
करता हूँ एक आविष्कार ।
एक नयी संरचना
और बना दिया “माँ” ।
मेरी सारी शक्तियां ,
मेरे सभी गुण ,
तैयार कर दूँ ,
मेरी परछाई ,
नव जीवन की उत्पत्ति ,
जीवन को संजोना ,
हर कला में सक्षम ,
सबसे उत्तम और उपयुक्त ,
ऐसी हो मेरी कृति ।
दूत बनाकर भेज दूँ धरती पर ,
और हो जाऊँ निश्चिंत ।
परिवार की नींव ,
धनश्री और अन्नपूर्णा ,
घर की वैद्य ,
अंधेरे में उजाला ।
निराशाओं में उम्मीद की डोर ,
संतान की संरक्षक ,
परिवार का अभिमान ,
घड़ी से भी तेज ,
समय भी इससे हारे
सारे बिगड़े काम वो ही संवारे ।
ज्ञान का भंडार ,
हमारी प्रथम और अंतिम गुरू ।
खुशियों की चाभी ,
कष्ट क्लेश हरने वाली
ईश्वर की छवि ।
परमात्मा की सम्पूर्णता
अकेली किन्तु पूर्ण है ।
माँ, माता, जननी, आई
अम्मा, मम्मी, बा, अम्मी
कोई भी नाम से
पुकारो या न पुकारो
सुन लेती है हमारी आवाज़
सबकी माँ ऐसे ही होती है ।
सबसे सुंदर ,सबसे अनमोल ,
अतुलनीय और अपारशक्ति है ।
सरस्वती , लक्ष्मी, दुर्गा ही नहीं
विपत्ती में काली भी है।
रानी लक्ष्मीबाई, जीजाबाई
इतिहास और वर्तमान में
अनेकों उदाहरण हैं
माँ के बलिदानो के ।
ईश्वर के अंतर्मन में ,
एक सवाल उठा ।
कैसी संरचना कर डाली ?
स्वयं के प्रयासों से ,
बुध्दिमता से, उच्च विचारों से ,
सुहृदय से, ममत्व से ,
माँ ने सर्वोत्तम स्थान पा लिया
माँ तो बन गई मेरी उत्तराधिकारी ।
करते हैं ईश्वर को अनंत आभार
माँ को बनाकर
किया हम पर असीमित उपकार ।
संपूर्ण ब्रहमाण्ड करता है
सभी माता जननियों को
शत-शत नमन ।