तो क्या हो??????
तो क्या हो??????
हादसा बन कर कोई ख़्वाब, बिखर जाए तो क्या हो?
ज़िन्दगी कहीं किसी मोड़ पर, ठहर जाए तो क्या हो?
वक़्त भर देता है हर ज़ख्म को सच है मगर,
ये ज़ख्म अगर हाथों की लकीर, बन जाए तो क्या हो?
हादसा बन कर कोई ख़्वाब, बिखर जाए तो क्या हो?
जब मंज़िल खुद अपनी राह, भटक जाए तो क्या हो?
शोर जब खुद खामोशी, में उतर जाए तो क्या हो?
हर रात की एक सुबह होती है सच है मगर,
मगर रात ही सुबह की तासीर, हो जाए तो क्या हो?
हादसा बन कर कोई ख़्वाब, बिखर जाए तो क्या हो?
आफताब खुद अपने महताब, को निगल जाए तो क्या हो?
रंग पंकज का खुद शबनम से ही, धूल जाए तो क्या हो?
तदबीर बदल देती है मायूसियों को सच है मगर,
मगर जब खुद मायूस हर तदबीर, हो जाये तो क्या हो?
हादसा बन कर कोई ख़्वाब, बिखर जाए तो क्या हो?
