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Sajida Akram

Drama

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Sajida Akram

Drama

तन्हाई

तन्हाई

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ढ़ली जो शाम,

आसमां ज़र्द हुआ,

सूरज जो ढ़ला,

तो ज़र्द-ज़र्द हुई ज़मी,


वो नन्हीं बच्ची

मेरी नज़र का नूर है,

पकड़ कर उंगली मेरी,

वो चलना सीखी है।


ये मैला पैहरन सफाई से,

बेहतर है,

यहाँ जो शोर है,

अंदर की तन्हाई से ,

बेहतर है.....।


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