तिरंगा १
तिरंगा १
चुप-चाप बैठी है कुछ न कहती,
न हाथों में चूड़ी है, न हथेली पे मेंहदी ,
गला है सुना तेरा, माथे पे सिंदूर नहीं,
अरे बांधती पैरो में पायल, या ओढ़ती रँगीन ओढ़नी,
लगाती आँखों मे काजल या कान में
पापा का लाया झुमका वही....
लगता हैं तुझे मालूम नहीं,
पापा घर आएँगे आज क्या किसी ने बताया नहीं?
दादा कह रहे हैं पापा तिरंगा ओढ़ आएंगे,
माँ सोच कितना गर्व होगा पापा जो माथे तिरंगा लाएंगे,
क्यों माँ फिर दादी रो रही, चाचू भी सिसकियाँ भरते हैं,
और बुआ के आँसू भी थमते नहीं
माँ होठों पे मेरे हँसी है, आँखों में तेरे क्यो आँसू भला
क्यों बाल तेरे बिखरे हैं, पहनी न रंगीन साड़ियाँ
न रूप न श्रृंगार किया, लगती तू अब प्यारी नहीं
न आज तूने खीर बनाई, कहानी भी सुनाई नहीं
न नहलाया मुझको तूने आज, सवेरे से डांटा भी नहीं,
माँ उठ जा जल्दी, तैयार हो के आ
आते ही होंगे पापा तू श्रृंगार कर के आ,
रो पड़ेंगे वो ,जो देखेंगे तेरी ये दशा
माँ क्यों तू मेरी मानती नहीं,
चुप चाप बैठी है कुछ कहती नहीं, अरे पापा
घर आएँगे आज क्या किसी ने बताया नहीं....