नारा-ए-हिन्द
नारा-ए-हिन्द
छुपा कर ग़लतियाँ अपनी तुम दाग़ मिटाया न करो,
अभी तो बाकी है चाल, झूठी जीत पर यूँ इतराया न करो।
नारा-ए-हिन्द तो है मेरे भी दिल में बसा हुआ जनाब,
माँग कर सबूत वतन परस्ती के घूँट नफ़रत के पिलाया न करो।
दाढ़ी टोपी के साथ तिरंगा है तो सवाल मेरी वफ़ादारी पे,
कर के यूँ शक मुझ पर तुम औकात अपनी दिखाया न करो।