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kashmala sheikh

Romance

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kashmala sheikh

Romance

इश्क़

इश्क़

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खातिर तिरी जो माँ को गोया गवाँ सकता है,

वो बाद तेरे औरों को भी फंसा सकता है।


के क़त्ल कर के कोई नन्ही परी का ज़ालिम,

औकात तू अपनी दोबारा दिखा सकता है।


यूँ तो बड़े लोगो में हूँ, फूल मसनद मेरे,

तू फर्श पे भी गर चाहे तो बिठा सकता है।


इन मरहलो में जुगनू कर ही लिया है खुद को,

गर चाँद भी नासिर चाहे तो बुझा सकता है।


खोने से तुझे ऐ मेरी जान डर लगता है,

गुस्सा के जितना हो मुझ को तू दिखा सकता है।


माँ को महल दे कर वो है खैर खुशफ़हमी में,

कर्ज़ा शिकम का सोचे है के चुका सकता है।


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