ग़ज़ल - सोचना क्या अब जो वादा है तो है
ग़ज़ल - सोचना क्या अब जो वादा है तो है
सोचना क्या अब जो वादा है तो है
सब लुटाने का इरादा है तो है
बात दिल की मैं छिपा पाता नहीं
दिल मेरा यह बे-लिबादा है तो है
लौट कर फिर आपके दर आ गया
इश्क़ का दिल में इ'आदा है तो है
दूरियाँ-औ-दायरे हैं दरमियाँ
फिर भी मिलने का इरादा है तो है
भूलने की कोशिशें नाकाम हैं
प्यार अब भी दिल में ज़्यादा है तो है
क्या हुआ जो काम मुश्किल है बड़ा
कर दिखाने का इरादा है तो है
ग़म ख़ुशी दोनों में हँसना चाहिए
ज़िंदगी में कम ज़्यादा है तो है
शान-शौकत हो मुबारक आप को
अब मेरा अंदाज़ सादा है तो है
सर झुका है औलिया के सामने
सल्तनत का शाहज़ादा है तो है
चाल अच्छी मात राजा की करे
फिर भले छोटा पियादा है तो है।

