प्रेमगीत 2
प्रेमगीत 2
प्रेमगीत हम मिलकर गायें बच्चे बूढ़े सभी को मनायें ।
सांसों की सरगम छेड़ संग मीठी तान मल्हार गायें।
बिरहा को अब पीछे छोड़ प्रेमरंग की भरें फुहार।
रुत मदनोत्सव की मौसम में भी छाई नवरंग बहार ।
प्रेमगीत का मास है ये जीवन में सच्चा विश्वास है ।
प्रेमगीत हिय में बसे मौन मुखर हो बने हर आस।
बिन प्रेम के जीवन सूना जैसे बिन रागों के साज ।
प्रेमगीत सहला जिया को,बन जाता है आवाज।
सच्चा प्रेम ईश प्रतिरूप, दूजे में छवि है अनूप प्रेमगीत।
प्रीत से प्रीत,द्वेष से द्वेषजैसा मुख वैसा दिखे ,दर्पण की रीत।
प्रेमगीत तराश मन के भावों को नव छुअन दे जाता है ।
संवेदना को कर मर्यादित राह शालीन दिखा जाता है ।