तुम्हे लगता हैं?
तुम्हे लगता हैं?
तुम्हें लगता है तुम अपना ईमान बचाते हो,
कर के शर्मसार नबियों को इस्लाम बचाते हो?
गर करनी हो हुकुमत तो करो जंग टीपू सी,
न करो मासूमों पर दंगे फसादों सी,
कौन सा इस्लाम कहता है तुम्हें जान लेने किसी अनजान की,
बढ़ाकर आतंकवाद तुम इमाम-ए-हसन की शहादत को दागदार बताते हो?
तुम्हें लगता है तुम इस्लाम बचाते हो??
जिस मज़हब ने सिखाया तुम्हे के माँ की कदमों में जन्नत है,
औ माँ बाप की पूँजी औलाद से न बढ़कर है,
उसी माँ से छीनकर औलाद.... तुम्हें लगता है ईमान बचाते हो?
कर के शर्मसार नबियों को तुम इस्लाम बचाते हो??
जिस नबी ने गैर की बेटी को भी सिर ढ़कने को आँचल दिया हो,
उस बूढ़ी औरत ने न फेंका था बस एक दिन कूड़ा,
उसका भी जाकर हाल चाल पूछा हो,
तुम लेकर जान किसी की उन नबी को फिर बदनाम बताते हो?
तुम्हें लगता हैं तुम अपना ईमान बचाते हो?
जो इस्लाम तुम्हें वज़ू के पानी को तक बहाने की इजाज़त नहीं देता,
बहाकर सरे आम खून को ज़ारा के लाल को दोषी ठहराते हो
अरे बंद करो,बंद करो... बंद करो खुद को मुसलमान कहना ,
कोई मज़हब नहीं है तुम्हारा ,
न कभी खुद को आमना के लाल का गुलाम कहना,
तुम नहीं इंसान भी,
तुम को काम भी शैतानी कराते हो....!
तुम्हें लगता हैं तुम अपना ईमान बचाते हो?
कर के शर्मसार नबियों को इस्लाम बचाते हो?