Mahendra Rathod
Romance
वजह एक थी कि
तू मुझसे दूर थी
वरना तेरी तन्हाई भी
कहाँ दूर थी।
तेरी तन्हाई
एक अजनबी
शायद तू मेरे ...
अकेला चल रहा ...
चले गए।
पहचान
गुमनामी
राह तेरी
तेरी शिद्दत
गुजारिश
मुस्कुरा उठती हूँ क्योंकि जानती हूँ तू दूर रहकर भी मेरा ख्याल रखता है। मुस्कुरा उठती हूँ क्योंकि जानती हूँ तू दूर रहकर भी मेरा ख्याल रखता है।
मैं से हम बनाने की उत्तकंठ अभिलाषा लिए तुम उस पल में एक योगाभ्यासिनी के स्वरुप मैं से हम बनाने की उत्तकंठ अभिलाषा लिए तुम उस पल में एक योगाभ्यासिनी...
लिखा सभी ने कुछ न कुछ मैं तुम पर क्या संगीत लिखूँ ! लिखा सभी ने कुछ न कुछ मैं तुम पर क्या संगीत लिखूँ !
एक दूसरे की धड़कन सुने, स्वर्ग की सैर पर चले। एक दूसरे की धड़कन सुने, स्वर्ग की सैर पर चले।
लिखकर रखना चाहती हूँ सबसे छुपा कर नहीं चाहती कोई परीक्षा लिखकर रखना चाहती हूँ सबसे छुपा कर नहीं चाहती कोई परीक्षा
खोल दो मुक्त होकर हृदय द्वार अब रूप अवगुंठ मे कब तलक यूं छिपाओगी तुम खोल दो मुक्त होकर हृदय द्वार अब रूप अवगुंठ मे कब तलक यूं छिपाओगी तुम
यही ख़्याल ख़्याल न होकर रूबरू कुछ कह देता। यही ख़्याल ख़्याल न होकर रूबरू कुछ कह देता।
क्यूँ लगता है मयख़ानों की होती है, दुनिया केवल पैमानों की होती है। क्यूँ लगता है मयख़ानों की होती है, दुनिया केवल पैमानों की होती है।
सो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा मैं कालिदास तो नहीं किंतु।।।।। सो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा मैं कालिदास तो नहीं किंतु।।।।।
बस इक बार लास्ट सीन देखने वाली बेचैनियां इश्क़ है। बस इक बार लास्ट सीन देखने वाली बेचैनियां इश्क़ है।
प्रेमरत सौभाग्य की मधुर बेला में प्रतीक्षा करो तुम तब तक। प्रेमरत सौभाग्य की मधुर बेला में प्रतीक्षा करो तुम तब तक।
वक्त की लहरों में जो छूट गए थे हाथ से। वक्त की लहरों में जो छूट गए थे हाथ से।
जब तुम लौट आओ घर को और कोई बहाना बाकी न हो। जब तुम लौट आओ घर को और कोई बहाना बाकी न हो।
तुझे तो याद होगा आसान काम कहां आता है मुझको। तुझे तो याद होगा आसान काम कहां आता है मुझको।
तो बता क्या फिर से ऐसे ही तड़पाने आएगी तू। तो बता क्या फिर से ऐसे ही तड़पाने आएगी तू।
वो तुम्हारे गहरे आँखों को शून्यता में दिख जाऊँगी। वो तुम्हारे गहरे आँखों को शून्यता में दिख जाऊँगी।
हमारी खुशियों को जैसे नज़र लग गई, हर कोई अब बस यही कहता है ! हमारी खुशियों को जैसे नज़र लग गई, हर कोई अब बस यही कहता है !
कभी ख़्याल आए तो लौट कर आना कुछ ख़ास नहीं बदला है यहाँ। कभी ख़्याल आए तो लौट कर आना कुछ ख़ास नहीं बदला है यहाँ।
सुबह की धूप सी तुम फैली रहती हो घर-भर में रात में चाँदनी सी छिटक जाती हो सुबह की धूप सी तुम फैली रहती हो घर-भर में रात में चाँदनी सी छिटक जात...
खारी-खारी बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है ! खारी-खारी बूंदें भी अमूल्य लगने लगती है !