चले गए।
चले गए।
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जिक्र उसका किया न था कहीं मैंने
कुछ बातें सुना कर ऐसी वो चले गए।
याद करने की फितरत कहाँ थी उनमें
गम की गर्दिश में धक्का देकर चले गए।
कमजोर निगाहें और भी अंधी हो गई
ऐसे ही हमें वो आयन बनाकर चले गए।
बाँट रहे थे उनका गम हमारा मान कर
खुशियाँ भी हमारी वो लूटकर चले गए।
पाने की उम्मीद न थी हमें कुछ उनसे
जो कुछ था हमारा वो छोड़कर चले गए।
बेहाल बना दिया था अंदर से तोड़ कर
वक्त से पहले हस्ति मिटाकर चले गए।
