एक अजनबी
एक अजनबी
हम भी गए थे एक बार किसी के आंगन में
झुकी सी नजरें थामे कोई अजनबी बैठा था।
लब्ज आए थे होठों पर शायद हमें वो देख ले
सुनने को बात किसी ओर की अजनबी बैठा था।
हमने मोड़ लिए कदम अपने उसके आंगन से
एक आहट भी ना सुने कोई अजनबी बैठा था।
जाकर दूर थोड़े हमने भी देखा उसके एतबार को
कहती निगाहें लेकर वहां कोई अजनबी बैठा था।
आज घर भी वही है और आंगन भी वही है यहां
नही है यहां कोई अपना जो वही अजनबी बैठा था।