अकेला चल रहा था ।
अकेला चल रहा था ।
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मैं जिंदगी की राह पर
यूँही अकेला चल रहा था
नही था पता मंजिल का
फिर भी में चल रहा था
अंधेरा हर जगह पे
इतना कि कुछ न दिख पाया
ढूंढने को कोई उजियारा
मैं अकेला चल रहा था
सुनी सी डगर पे कुछ
न लगता था मुझे सुहाना
कुछ मिलने की आहट में
मैं अकेला चल रहा था
लहरे समंदर सी
तूफान बनके टकराती है यहाँ
लिए आश किनारे की
यहाँ में अकेला चल रहा था
बंजर बन गई थी वो
वादियां जिसमे थी बहारे
ये सावन कहीं से सोच के
में अकेला चल रहा था ।