पहचान
पहचान
रूठ जाए किसी से तो हम खुद टूट जाएंगे
बैशाखी तो टूटी है फिर तो कैसे उठ पाएंगे।
इश्क़ की राह पर चलना शोलों से कम नहीं
बीच राह में जो घबरा गए तो कैसे जुट पाएंगे।
सोचते हैं लोग क्यूँ मेरे न रुकने की बात पर
खुद पे हो अगर यकीं तो कैसे झुक पाएंगे।
जिक्र न करे कोई तो क्या, पहचान खुद बनो
किसी और के पंख लेकर कैसे उड़ पाएंगे।
तोड़ने पर टूटते हैं वो सितारे नहीं कहलाते
मूल हमारा है किसे पता फिर कैसे बिक पाएंगे।।