तेरा मेरा सफर,
तेरा मेरा सफर,
वो तेरे मेरे सफर का भी दौर खूब था जो संग तेरे गुज़ारा वो हर लम्हा खूब था,
कभी मिल के करते हम बातें ढेर सारी कभी रूठ जाने का भी वो मौसम खूब था,
रहते ना तन्हा कभी एक दूजे बिन और कभी यादों से काम चलाने का वो बहाना खूब था,
एक पल भी दूरी जहां सहनी ना हमको गवारा थी
वहाँ नराज़गी के चलते बिछड़ने का ये नागवार आलम भी बहुत खूब था,
कसक दिल में बढ़ती मिलन की बंदिशों को तोड़ के
सारी अपने ही उसूलों को खुद ही बनाने का वो किस्सा भी खूब था,
तय कर लिया था मिलकर आए चाहे जैसा भी मौसम ज़िंदगी में तेरे साथ का ये इरादा खूब था
छूटे ना राहे सफ़र में ज़िंदगी के किसी मोड़ पर तेरा मेरे हाथों में हाथों का होना वो भरोसा खूब था ।

