प्यार का रिश्ता
प्यार का रिश्ता
बाँध रही थी प्यार कलाई आँखें प्रीत से नम
हो आई याद आ गये वो दौर पुराने जब लड़ते
फिरते घर आंगन सुख दुख सारे बचपन में मिल
बांटे नादा बन लड़ एक दूजे से हारे कभी
शिकायत कभी मनाना भाई बहन का ये किस्सा
पुराना खुद करते समझौता बातों का कोई करे
तो सर अपना खपाते आंख आँसू ना आने देता
कभी चिढ़ा खुद हमें रुलाता फ़िक्र कभी ना हमें
दिखाता पर चिंता में हमारी हि बस रहता पसंद
हमारी तोहफ़े देता खुश ना होते तो दुखी वो होता
लगता जैसे ये सारी दुनिया लाकर पाँव हमारे लाकर
रख देगा।
