,,हम मिले और मिले भी ना थे,,
,,हम मिले और मिले भी ना थे,,
हम मिले और मिले भी ना थे इश्क के किस्से शुरु हुए और हुए भी ना थे,कुछ सुकून रहा तो कुछ बेचैनी के
पल हमने हर पल गुज़ारे थे,मगर उस बेदर्दी को हमारे इस एहसास का पता तक ना था,वो नज़र आता तो
दिल को सुकून आ जाता,और जो कभी वो नज़र ना आता तो जीना जैसे बड़ा ही मुश्किल हो जाता,कभी
लगता वो मुझे आज़मा रहा और दूरियाँ रखने का कर रहा जैसे वो कोई बहाना था,दूर से दीदारे बेकारी
दिखती उसकी आँखों में हमेशा,मगर इतरा वो हमसे नज़रें अपनी चुरा लिया करता था,इश्क ये मेरा
उलझनों से भरा जैस कोई फ़साना था,क्या समझते क्या नहीं क्या कहते क्या नहीं बस मन इन बातों की
गुथी में फंसा हुआ बेचारा था,उसे कह दूँ अपना या उसकी मैं ही हो जाऊं ऐसा कोई इशरा उसने कभी
मुझसे किया भी तो ना था,ये दर्द था इस का और ये दर्द जैसा भी ना था दिल फिर भी उसकी ही मोहब्बत
का तो मारा ही था,ना लौट सकते थे उसकी दुनियाँ से वापस और ना ही रुकने का कोई बहाना ही था।

