तब जाकर कोई कवि बनता है
तब जाकर कोई कवि बनता है
सपनों की दुनिया बसा कर,
ख्वाबों के अरमाँ सजाकर,
शब्दों के मोतियों को चुन-चुन कर,
सुनहरे-से ताने-बाने वो बुनता है,
तब जाकर कोई कवि बनता है।
ख्यालों मे खो कर, कहीं दूर जहाँ में,
कल्पनाओं के पर लेकर, नीले आसमाँ में,
कभी उड कर, कभी डूब कर जज्बातों में,
एहसासों की माला वो पिरोता है,
तब जाकर कोई कवि बनता है।
हर पल को जी कर, पल-पल वो मर के,
पीड़ परायी महसूस कर कर के,
हर जश्न मे खुद को शामिल कर के,
समाज का वो आईना बनता है,
तब जाकर कोई कवि बनता है।