आख़िरी सलाम
आख़िरी सलाम


जो लौटा न अब के सरहदों से
मेरा आख़िरी सलाम पहुँचेगा।
जो दे न पाया माँ तेरी दहलीज़ पर दस्तकें
शहर-शहर गाँव-गाँव मेरा पैगाम पहुँचेगा।
मैं जाते जाते लहू से अपने इक इबारत लिख जाऊँगा
देशभक्ति के तरानों में माँ मैं भी गुनगुनाया जाऊँगा।
एक माँ को खोकर दूजी के आगोश में समा मैं जाऊँगा
एक ज़िन्दगी खोकर इक दिन मैं सवा अरब हो जाऊँगा।
तू वियोग में मेरे द्रवित होकर कहीं हिम्मत न खो देना
मेरे साहस के किस्से सुनाना, बस दो आँसू तू रो देना।
फिर मेरी खामोशी विलीन हो कर इन फ़िज़ाओं में
वंदे मातरम् और जय हिन्द का अमर गान गूँजेगा।
जो लौटा न अब के सरहदों से
मेरा आख़िरी सलाम पहुँचेगा।