Krishna Basera

Abstract

5.0  

Krishna Basera

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मेरे मौला

मेरे मौला

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दोनों जहाँ से परे

रूहानियत के

फ़लक से टूटा हुआ

एक तारा हूँ मैं।


तेरा मेरा सदियों

से है राब्ता

मेरे तबस्सुम में

तेरा ही तो अक्स है


इन शोखियों से

बखूबी वाबस्ता है

मेरा ज़र्रा-ज़र्रा।


ऐ मेरे मौला ! 

मेरे हर्फ़ो में,

मेरे रक्स में

मेरी बेख़ुदी में,


मेरी रूह में

हर एक कतरे में

फ़क़त तू ही तो

समाया है।


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