तब आजादी पाई हमने
तब आजादी पाई हमने


जब हंसते- हंसते
फंदे पर झूले
देशभक्त भारत के वीर
जब सैकड़ों
माँओं ने झेले
अपने सीने में तीर
जब अनगिनत सांसों की
कीमत गंवाई हमने।
तब आज़ादी पाई हमने।
जब लहू की
धारा फूटी
भारत के हर कोने से
जब चिंगारी
सुलग उठी
नवजातों के रोने से
जब लहू की बूंदों से
क्रांति अलख जगाई हमने
तब आज़ादी पाई हमने।
जब वीरों ने खेली
निज रक्त से
होलियाँ
जब बहनों ने बनाई
रक्तर्ण
रंगोलियाँ
जब गोलियों से रचाई
अपनी सगाई हमने
तब आज़ादी पाई हमने।
जब विद्रोही
बन बैठा
देश का जन-जन
जब क्रांति में
रम उठा
नारी- बाल मन
जब एकता की कुंजी से
आत्मा खुलवाई हमने
तब आज़ादी पाई हमने।
जब राष्ट्र में जागा
महाराणा प्रताप-सा
स्वाभिमान
जब राष्ट्र ने खोजा
केवल स्वतंत्रता में
सम्मान
जब राष्ट्रहित में
सहभागिता दिखाई हमने
तब आजादी पाई हमने।
जब मंगल पांडे ने
किया
भयंकर सिंहनाद
जब भगत सिंह
कूदे
निज देहली फांद
जब लक्ष्मीबाई-सी युद्ध में
खलबली मचाई हमने।
तब आज़ादी पाई हमने।
जब दुश्मन के
इरादों पर
सुभाष ने प्रहार किया
जब गांधी ने
शांति से
जुल्मों का संहार किया
जब आज़ाद- सी निर्भीकता
हृदय में उगाई हमने
तब आजादी पाई हमने।
जब जीवन की
परवाह
नहीं की
खाई गोलियाँ
आह
नहीं की
जब निज श्वासों को
बलिदानी डोर थमाई हमने
तब आज़ादी पाई हमने।
जब जलियांवाला
बाग हुआ
जब कवि हृदय भी
आग हुआ
जब विद्रोहों की
ज्वाला धधकी
सरल हृदय भी
नाग हुआ
जब विलासिता, कायरता की
सूली चढ़ाई हमने
तब आज़ादी पाई हमने।