ताले
ताले
कोई द्वार नहीं, बस दीवारें हैं
कोई मंजिल नहीं, बस पंथ पथरीले हैं
सुबहें उदास, उजियारे भी काले हैं
जीवन चकनाचूर, सांसों के लाले हैं
कोई धाम नहीं, कोई गाम नहीं
आकाश कब था अपना
मुट्ठी भर जमीन जो मिली
उससे भी पैरों में छाले हैं
कोई नाम नहीं, पहचान नहीं
अपना नहीं कोई, कहने को सब
रिश्तों के बादल कारे हैं.
पिंजरे के पंछी सा जीवन
घर अपना किन्तु बाहर से जड़े ताले हैं।