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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Drama

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Drama

स्वर्णिम युग आया हम लोगों का

स्वर्णिम युग आया हम लोगों का

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बड़ा ही घमंड हो गया था

पाँच सौ और एक हजार के नोटों को !

बहुत इतराते थे ,

जहाँ देखो पार्टिओं में ,उपहारों में ,

नाच गानों में अपना

धोंस दिखलाते थे !


हम सौ, पचास, बीस, दस

और खुदरा दुबक गए थे,

हम अनाथ बन के

संदूकों के काल कोठरियों में छुप गए थे !


कभी-कभी लघु छिद्रों से

उचक कर महारथिओं को झांक लेते थे,

पर हमारी पीड़ा को

किसी ने नहीं समझा

सभी नजर अंदाज कर लेते थे !


हमें एक आश थी ,

हमारे दिन भी लौटेंगे

हमें आज़ाद करके

हमें सर पर बिठाएंगे !


अब हमारी आ गयी बारी

कुछ दिनों तक हम भी नाचेंगे !

अठ्ठनी और सिक्के 'नाच बलिये ' के मंच

पर अपना जलवा दिखायेंगे !


हम छोटे नोट भले ही तिरष्कृत रहे,

गुमनाम पर्दों में छुपछुप के

सिसकियाँ भरते रहे !


अब हमें भी मौका मिल गया ,

हम ऑर्केस्ट्रा बजा के शमां को बांधेंगे !


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