स्वर्णिम युग आया हम लोगों का
स्वर्णिम युग आया हम लोगों का
बड़ा ही घमंड हो गया था
पाँच सौ और एक हजार के नोटों को !
बहुत इतराते थे ,
जहाँ देखो पार्टिओं में ,उपहारों में ,
नाच गानों में अपना
धोंस दिखलाते थे !
हम सौ, पचास, बीस, दस
और खुदरा दुबक गए थे,
हम अनाथ बन के
संदूकों के काल कोठरियों में छुप गए थे !
कभी-कभी लघु छिद्रों से
उचक कर महारथिओं को झांक लेते थे,
पर हमारी पीड़ा को
किसी ने नहीं समझा
सभी नजर अंदाज कर लेते थे !
हमें एक आश थी ,
हमारे दिन भी लौटेंगे
हमें आज़ाद करके
हमें सर पर बिठाएंगे !
अब हमारी आ गयी बारी
कुछ दिनों तक हम भी नाचेंगे !
अठ्ठनी और सिक्के 'नाच बलिये ' के मंच
पर अपना जलवा दिखायेंगे !
हम छोटे नोट भले ही तिरष्कृत रहे,
गुमनाम पर्दों में छुपछुप के
सिसकियाँ भरते रहे !
अब हमें भी मौका मिल गया ,
हम ऑर्केस्ट्रा बजा के शमां को बांधेंगे !
