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Chandramohan Kisku

Tragedy

3  

Chandramohan Kisku

Tragedy

स्वीकारता हूँ

स्वीकारता हूँ

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मैं स्वीकार करता हूँ

तुम्हारी गरीबी हालत

अत्याचार और शोषण के लिए

मैं भी एक कारण हूँ।


जब तुम छोटी थी

कुल्ही धूल में

खेलती रहती थी

तभी तुम्हें सिखाया था

की घर और समाज की इज्जत

केवल औरतों के पास ही है।


और औरतों को ही उसे बचना होगा

फिर तुम्हे बताया था

सहना औरतों की

गौरवशाली परम्परा है।


मैं ही तो तुम्हारी

मन की उर्वर मिट्टी में

इस बीज को बोया था

की औरतों की प्रतियोगिता

औरतों से ही संभव है

मर्द से नहीं।


मर्द श्रेष्ठ जात होते हैं

और वे श्रेष्ठ ही रहेंगे

औरत -औरतों में दुश्मनी।


मैं ही बनाया था

मैं स्वीकार करता हूँ

मैं तुम्हारी सोई हुई

असीम शक्ति को

पनपने नहीं दिया।


दया -दर्द लज्जा की

आभूषण से सजाकर

मैं तुम्हे अपाहिज बना दिया हूँ

मैं स्वीकार करता हूँ

तुम्हारी हो रही अपमान के लिए

मैं भी कारण हूँ।


माँ गर्भ में लड़की

तुम्हें स्वागत नहीं किया

घर की बहू के रूप में भी नहीं

तुम्हारी उन्नति को देखकर

सभी तरह की कामों में

बाधा का सृजन किया था।


हाँ, मैं यह भी स्वीकारता हूँ

पर आज मेरी मन की

चट्टान तोड़कर

केवल यही बात है

की कष्ट सह रही औरतों की

आजादी युग

बहुत दूर नहीं है।


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