सूरज पश्चिम से जो निकला है : हेमंत लाटा
सूरज पश्चिम से जो निकला है : हेमंत लाटा
कुछ अर्घ्य देने को खड़े हुए,
कुछ थे बिस्तर पर पड़े हुए,
मन उमंगित हो रहा था,
मैं नया सवेरा जी रहा था!
कलयुग में सतयुग का,
प्रकाश पुँज सा निकला है!
मन हर्षित कर जाने को,
सूरज पश्चिम से जो निकला है!
बुराई का सर्वनाश हुआ है,
अच्छाई का अहसास हुआ है,
"दुष्कर्मी" भी खत्म हो गए,
सत्य का नवाचार हुआ है!!
नेता भी "प्रतिनिधि" बने हैं,
आवाज़ जनता की उठा रहे है!
देशद्रोही सब भाग गए है,
"देशवासी" तिरंगा लहरा रहे है!
शिक्षा सबको मिल रही है,
लड़कियाँ भी अब पढ़ रही है,
सीता सी सुरक्षित बनी वो,
नए कीर्तिमान गढ़ रही है!
भेदभाव अब ख़त्म हो गया,
रंगभेद का सत्यानाश हुआ है,
ऐसी भी दुनिया हो सकती है,
मुझको अब अहसास हुआ है!
"आतंकवादी" अब खत्म हो गए,
अब "भगवान" सबको प्यारा है!
विश्व में सबसे विकसित देश,
हिंदुस्तान हमारा है!
चिकित्सा भी सरल हो गयी,
गरीब भी ज़िंदा बच रहे है!
इस दुनिया में रहने को,
सब मानवता सिख रहे है!
सात्विक भोजन की मांग बढ़ी है,
समुद्र का पानी अब मीठा निकला है!
मन हर्षित कर जाने को,
सूरज पश्चिम से जो निकला है!!
खुशियाँ चारों ओर है बिखरी,
हर समस्या का "हल" भी निकलेगा,
"हेमंत" की मानेगा अब सूरज,
वो पश्चिम से भी निकलेगा!!