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सूरज की दस्तक

सूरज की दस्तक

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क्यूँ मायुस है चांदनी आसमां पर

क्यूँ बिखरे है रंग जमीं पर

क्यूँ हवाओं में ताजगी सी है

लगता है कहीं से बहार आ गयी है। ।


क्यूँ ताजगी सी है हवाओं पर

क्यूँ बिछी है नजरें राहों पर

क्यूँ इन्तजार की इन्तहां हो गयी है

लगता है बेमोसम छटा बिखर गयी है॥


क्यूँ गुनगुनाहट सी है सांसों में

क्यूँ तान छिडी है साजों में

क्यूँ आसमां की खामोशी टुटी सी है

लगता है मिलन की बात आ गयी है॥


क्यूँ महकते ही पत्ते शाखों पर

क्यूँ लहराती है जुल्फें शानो पर

क्यूँ छलकता है दिल हरदम

लगता है सूरज के आने की दस्तक आ गयी है...


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