सूरज ढल जाएगा
सूरज ढल जाएगा
जिंदगी से जान पहचान मे हम, खुद ही की जान से अंजान रह जाते हैं
यह पन्ने जिन्हें किसी ने सौंपी हैं साँसे, अपनी ही नासमझी में बेजान रह जाते हैं
कड़ी धूप की वर्षा में, जरा सी ठंडक के लिए तरसते रहे
छाँव इन्ही के भीतर थी, फिर भी यह पेड़ तड़पते रहे
हाँ.. जिंदगी से थोड़े शिकवे हैं, मगर खुदसे बहुत गिले हैं
शाम होने को आई है अब, और हम अभी खुद से मिले हैं
बेखौफी का परदा हैं, पीछे सहमा सा एक चेहरा है
क्या कह के खुदको हौसला दे, यह दरिया कितना गहरा है
सावन तो धूल जाता हैं मगर ,दिल पे पतझड़ के किस्से छप जाते हैं
हम सूरज के उजाले मे दिनभर, न जाने किस अंधेरे में छुप जाते हैं
अभी लौट के आए मगर, अब यह सिलसिला टल जाएगा
बस एक घड़ी का इंतज़ार, और यह सूरज ढल जाएगा।
