Sana K S

Romance

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Sana K S

Romance

सुनो....

सुनो....

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सुनो,

वो सर्दीयों की हवाओं में जब तुम बातें करते हो ना,

तुम नहीं जानते पर, तुम्हारी साँसे बहुत तेज होती हैं,

वो हर एक झनकार सी मेरे कानों में बजती थी....


जब तुम बातें करते थे,

ना जाने क्यों मैं अपनी आँखें कर बंद,

तुम्हें चुपचाप सुना करती थी,

तुम्हें महसूस किया करती थी,

अंजानी सी कशिश थी उनमें,

जो मैं चाहकर भी ख़ुद को रोक नहीं सकती थी......


कैसे कह सकती हूँ तुमसे कि तुम्हारी साँसो में,

मुझे मेरी साँसों को मिलाना हैं,

एक स्त्री होने के नाते,

मुझे जमाने से और तुमसे भी डरना है,

अपनी जजबातों को बस छुपाना है

कि कोई गलत ना समझ ले.....


कैसे कह सकती थी तुम्हें, 

तुमसे मिलकर ये एहसास हुआ है अधूरापन क्या होता है,

रातों में उठ-उठ कर सिर्फ तुम्हें अपने पास खोजने की कोशिशें की हैं,

पता हैं समझोगे तुम भी कि तुम्हारे जिस्म की आस हमें हैं,

कैसे बताऊँ तुम्हें कि तुम्हारे बिन खुद पर ही अभिशाप हूँ मैं



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