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Sapna K S

Others

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Sapna K S

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प्यार, इश्क, मुहब्बत...

प्यार, इश्क, मुहब्बत...

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सुनो,

तुम से कुछ कहना हैं,

इश्क, मुहब्बत, प्यार

बस एक तरफा ही जान पाये हो ना ..

हाँ जरूर ही कहोगे तुम,

बहुत ख़ूबसूरत बलाओं से जो मिले थे तुम,

रूप रंग के जाल में ही ठहरें रहें तुम,

हाथों को छुआ होगा, नजरें भर के भी देखा होगा,

फिर भी यकीन से कह सकोगे,

क्या वहीं मुहब्बत थी तुम्हारी.......

क्या तुम कभी किसी मुहब्बत की परछाई को छू सके हो..

क्या कभी इश्क के जुल्फों की छाँव में

अपनी दिन भर की थकान मिटा सके हो ..

क्या किसी प्यार की आँखों ने

तुम्हारी आँखों में छुपे आँसुओं के दर्द को चुमा हैं..

क्या कभी किसी मुहब्बत ने तुम्हारी लड़खड़ाती आवाज में,

छुपे गम को अपनी आवाज के सहारे सँभाल लिया हो..

हर किसी के हाथों को थाम तो सकें हो तुम,

लेकिन किसी के छोटी उँगली से खुद की छोटी उँगली को फँसाकर

पुरी दुनिया को पाया हैं..

नहीं ना...

तो तुम कैसे किसी मुहब्बत को जान सकोगे..

बिल्कुल ही नहीं ना..

जो फरेब तुम्हें मिला वहीं सीखा हैं तुमने,

वहीं लौटा रहें हो ..

दिल के सुकून की तलाश में भटककर

खुद को ही मिटाते चले हो..

सुनो,

रूक सको तो रूक लो दो पल के लिए,

खुद को सिमटकर देख लो एक बार फिर,

मंजिल तो आस पास ही होगी

फिर भी ,

नजरों को चुराने की ये जो तुम्हारी आदत हैं ना,

हर चीज से भागकर खुद को तनहाई में

ढकेल लेने की ये जो जिद्द है ना..

कहीं तुम्हें उम्रभर का राह से भटका मुसाफिर ना बनाकर रख दें....



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