प्रेमिका .. मेरी प्रेयसी...
प्रेमिका .. मेरी प्रेयसी...
सुनो
कैसे कहूँ,
तुम मेरी प्रेमिका मेरी प्रेयसी हो,
तुम को भी अजीब लगा ना
हाँ मुझको भी लगा था,
कुछ समझ पाता, खुद को सँभाल पाता ,
तब तक तुम जीवन में आ बस गयी थी,
खुद से भागने का, तुमसे पीछा छुड़ाने का,
प्रयत्न मैंने हर अंदाज में किया,
लेकिन तब तक तुम मेरे जहन को झिंझोड़ चुकी थी,
तुम्हारी खिलखिलाती जो हँसी हैं ना,
लगता हैं वो अब धड़कनों का साज हैं मेरे,
अपने बहते आँसू से तुम
मेरी जिंदगी को मेरे धड़कनों से अलग करती हो,
जब कभी भी तुम खुद से रूठ कर नाराज होती हो ना,
तब ऐसा लगता हैं कि,
तुम्हारे पास दौड़ कर आ जाऊँ
और ,
अपनी बांहों में लेकर अपने सीने से तुमको कसकर लगा लूँ,
लेकिन मजबूर हूँ,
नहीं कर सकता कुछ भी तुम्हारे लिए,
कसूर तुम्हारा नहीं,
किस्मत का दोष हैं मेरे,
जिस किसी को भी अपना कहना चाहा मैंने,
वो मेरा होने से पहले ही मेरा ना रहा..
हाँ, भयभीत हो जाता हूँ मैं,
तुम्हारे अनछुए स्पर्श को खुद से मिटाने के कल्पना से,
तुम्हारी खुशबू को जो महसूस होती हैं मुझे,
तुम ही कहो ..कैसे मिटा दूँ खुद से...
इतना धैर्य नहीं रहा मुझमें
तुमसे खुद को अलग कर सकूँ,
इन्हीं बातों में ऐसे अटका हूँ के
तुम्हें समझाने से कठिन हैं ये,
मेरा स्वयं को समझना
हाँ तुम्ही मेरी प्रेमिका हो .... हाँ तुम्ही मेरी प्रेयसी हो....