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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Romance Others

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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Romance Others

प्रेम का अधिकार

प्रेम का अधिकार

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इक दिन सरोज ने यूं ही हंसकर,

पूछ लिया इक आली से,

ए भ्रमर बता तुझे प्रेम बड़ा

हां प्रेम बहुत है मेरी लाली से,

पर मुझको क्या मिला नहीं 

जीवन में यह अधिकार सही

ए गुंजन करते भौंरे बता 

मुझे हो सकता क्यों प्यार नहीं।।


तू मेरा प्रेमी है लेकिन ,

मैं और किसी का हो सकता हूं ।

मैं तेरे प्रेम को भजता हूं,

तुझसे कोई तकरार नहीं,

पर 

जिद पर अड़े ए भौंरे बता 

मुझे हो सकता क्यों प्यार नहीं।।


तू आसपास मंडराता है,

अपने जौहर दिखलाता है,

तू बस अपनी बात बताता है,

तू मुझसे प्रीत जताता है,

हां तारीफ मैं तेरी करता हूं,

पर मुझ से प्रेम तू करता है

इसलिए मैं तुझ से प्रेम करूं

मेरे प्रेम का ये आधार नहीं,

ओ गुंजन करते भौंरे बता,

मुझे हो सकता क्यों प्यार नहीं,


थक जाए तभी हो रात वहीं,

तू जगे सवेरा हो जाए,

तू जिससे भी प्रेम करें,

वह बस तेरा हो जाए,

'मैं' 'मेरा' और 'मेरा ही'

ये प्रेम का है संस्कार नहीं,

पूरी आजादी मुझको भी,

इससे करना इंकार नहीं

ए गुंजन करते भौंरे बता

मुझे हो सकता क्यों प्यार नहीं



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