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Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

यादाश्त

यादाश्त

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याद हैं आज तक रिश्ते जिन में गहराई देखी, 

बन्द आंखों में भी उनकी परछाई देखी। 


भीड़ तो आज भी बहुत है

शादियों में मगर अपनों की 

तो तन्हाई ही देखी। 


नाम मुहब्बत है रिश्तों का

मगर फिर भी रूसवाई देखी। 


खुशबु आज भी आती है रिश्तों में मगर सुगंध पराई

ही देखी। 


कातिल भी खुद और मुंसिफ भी खुद ही हैं, ऐसी आजकल

सुनवाई देखी। 


सह लिया। दर्द अपने जख्मों का, पर हमेशा पीड़ पराई देखी। 


वोही साज हैं, वोही शौक हैं

लेकिन आबाज में रूसवाई देखी 


लिखित में रिश्ते पक्के हैं

सुदर्शन पर बुजुर्गों की ठुकराई देखी। 


कौन कहता है इन्सानियत विकती नहीं, हमने तो विकती

एक एक पाई देखी। 


इन्सान ही बन रहा है इन्सान

का दुश्मन अक्सर, अपनों में 

भी पीड़ पराई देखी। 


भूल गया रामायण को जमाना, जिधर देखो

महाभारत और लड़ाई देखी। 


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