STORYMIRROR

Sonam Rout

Romance

4  

Sonam Rout

Romance

दर्पण

दर्पण

1 min
307

 बन-ठन मैं तेरे यादों की दर्पण में

दिखती रही तेरे वादों की बंधन में


महकी सी तेरी सौंधी सौंधी सी खुशबू 

बिखरी जैसे मेरे मस्कन की आंगन में


डरती हैं सांसे दूर हवा की झोंके से

कोई इक आहट होते ही चिलमन में


दरीचे पर चांदनी भी आज फीकी है

छुप जो गया चांद बादलों की दामन में


इंतज़ार अब ये बढ़ती जा रही "आम्री"

ना रैन बिता चांद आने की उलझन में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance