अब्रदीदा
अब्रदीदा
उनसे मिलने की ख़ुशी में
मालूम न था वक़्त निकले कैसे?
न सूझ रहा था
लिबाज़ -ए-एहसास ओढ़े मिले उनसे कैसे?
हम उनके मिलने के तलब़ से ऐसे घबराये
न जाने लोग उनसे मिल खैर मनाते कैसे?
उनके आशियाने में जा कर खुद का ठिकाना भूले
न जाने उस आशियाने से हो परिंदे लौटे कैसे?
झील सी गहरी आंखों में हम डूबे, उबर न पाते
न जाने ख़ाब उनसे हो रूबरू मुकम्मल होते कैसे?
उनके ख़्वाहिदः हम ,इक झलक से अब्र-दीदा हैं होते
वो क्या जाने दिन-ओ-दिन बगैर उनके बीते कैसे?
इक सौंधी सी खुशबू से दिल-ए-खुमार हैं चाहते
न जाने हवा उनके सांसो से हो जी भर के गुजरे कैसे?
बे-गिरह उनके सांसो में जिस्म-ओ-जान गिरफ़्तार हैं होते
हम तो गिरफ्तार-ए-आरजू पर वो बेखबर रहते कैसे?