हँसी!!
हँसी!!
जो गुलशन के फूलों को मुरझा दे,
वो विनयता चेहरों का,
जो पीर फकीरों को भी उलझा दे,
मैं तो तेरी दासी बन जाऊं जीवन भर की,
जो तू मेरे उलझे राहों को ले तुझ तक उन्हें सुलझा दे।
तिनका तिनका ख़ुशी जोड़ूँ,
फिर भी कमी तेरी खलती है।
लफ्ज़ लफ्ज़ मैं तुझे पिरोऊँ,
फिर भी नज्म न पूरी होती है।
वक्त बेवक्त ख़ुद को समेटूं,
फिर भी सांसें मचलती है।
एहसान कर !!!
एहसासों को अब इतना तू ना निचोड़
की मिलने तक अँखियों में न अश्क रहे,
तेरे हथेली को थाम ने को बेकरार दिल,
जो टूटी रूह को भी न पनाह मिलती है।

