इक दिया
इक दिया
हम दिया जलाते हैं
अंधेरा को दूर करने के लिए
जग में रोशनी भरने के लिए।
चारों तरफ़ खुशियां और
चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए।
अग़र दिया जलाना ही है
जला दो इक दिया उस के लिए
जो बेघर बिखरा छूटा है
जला दो इक दिया उसके लिए
जिस का सपना सुनहरा टूटा है
जला दो इक दिया उस के लिए
जो अंधेरी राह में भटका है
ज्ञान का इक दिया जला दो
उलझन में जो लटका है।
जला दो इक दिया अपनेपन की
जो रिश्तों से आज अखरा है
मिलन की इक दिया जला दो
वो जो अपनो से दूर बिखरा है
जला दो इक दिया उस घर में
जहां चूल्हा न कभी जलता है
नेकी की इक दिया जला दो
वो जो भूखा प्यासा तड़पता है।
जला दो इक दिया उस के लिए
जो इश्क़ में जहाँ लुटाया है
भरोसे का इक दिया जला दो
उस ने इंतज़ार में ख़ुदको मिटाया है।
जला दो इक दिया उस माँ के लिए
सरहद पर जिस का बेटा है।
(उस माँ के लिए भी
सहारे का इक दिया जला दो
जिस का बेटा न कभी लौटा है।( २)
इस दीवाली इक ऐसा दिया जलाओ जिस की
किसी को जरूरत है।
