नूर
नूर
ज़ुबानों पर मेरे शिकवा ज़रा तू लाया है
क्यूँ यादों ने हमें तेरी बहुत रुलाया है।
क्यूँ इस उम्र ने भटकाया के भीड़ में खो गये
दोस्त बन के फिर सीने से किसने लगाया है।
मजबूर हुए हम कितने तक़दीर के हाथों
यक़ीन कर तू मोहब्बत ने हमें सिखाया है।
दोस्तों में छुपे थे दुश्मन अभी नज़र आये
शमा को प्यार की किसने फिर से जलाया है।
इश्क़, वफ़ाएं, मोहब्बत ये पास नहीं तुम्हारे
ऐसे थे प्यासे तुम दरिया तुम्हें दिखाया है।
तबाह हो गए हम मौत आने से पहले
फूलों से क़ब्र को मेरे तूने खूब सजाया है।
लिखा है नाम मेरा क्यों फिर तेरे दिल पर
समझ न पाये के तुमने ये क्यों छुपाया है।
सुलगते दिन का मंजर इस क़दर से सहमा है
सुलग-सुलग कर मन में धुआँ उठाया है।
ज़रा सूरज से कहो तपिश तेज़ न करे अपनी
"नीतू" ने बर्फ़ की तरह आज मुझे गलाया है।
गिरह
अक़्स नजरों के प्यालों में क्यों छुपाया तूने
हर एक रिन्द के चेहरे पे नूर आया है।

