मोहब्बत के निशां
मोहब्बत के निशां
हर लम्हा यहांँ पिघल रही मैं, जिसकी यादों में
ढूंँढ रही मोहब्बत के निशां बीती मुलाकातों में।
उसके लौट आने का तो आता ही नहीं मौसम
जानकर भी उलझा है दिल मेरा उन्हीं बातों में।
शाख से गिरे सूखे पत्तों सी, लम्हा लम्हा बिखर रही हूँ मैं
पर उसकी तस्वीर संजो रखी है, आज भी इन आंँखों में।
किया था वादा उसने, लौटकर एक दिन ज़रूर आऊंँगा
कहकर इंतजार के लम्हें, वो थमा गया मेरे इन हाथों में।
दिन बीते, महिने बीते, बीत गए कितने बरस सावन के
पर बहारों की खुशबू तक ना आई, इंतजार के लम्हों में।
मानों गुज़र गया है एक ज़माना, उसका दीदार ना हुआ
पर इक आस बंँधी है इसी से कि वो आता है ख़्वाबों में।
शिद्दत से चाहा उसे, ये चाहत ना मिटेगी उम्र भर शायद
तो कैसे कहे ये दिल, कोई सच्चाई नहीं उसके वादों में।
उसने ना निभाई वफ़ा और ना पूरा किया अपना वादा
पर मोहब्बत तो थी कभी, उन लम्हों, उन मुलाकातों में।

