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Kanchan Shukla

Romance

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Kanchan Shukla

Romance

शिक़वा

शिक़वा

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मेरे संतप्त हृदय को संतप्त छोड़ गए हे मेरे मन,

दो घड़ी तो रुक जाते,

मैं तुमसे अपनी वेदना,

अपनी बेचैनी कहती,

अपने मनोभावों को,

शब्दों में पिरोकर बताती,

मन इतना बेचैन क्यों है?

तुम से कहती,

अब मैं समझ गई हूं,

अपने मन की बेचैनी का कारण,

कुछ पाने की चाहत,

खोने का डर करता है मन को बेचैन,

जज़्बात बड़े नाज़ुक हैं,

टूटकर बिखर जाएंगे,

यह अहसास बेचैन कर जाता है,

फिर अपनी ही सोच पर हंसी आती है,

हमने कुछ चाहा यह हमारी ख़ता है,

हर चाहत पूरी हो जरूरी तो नहीं,

तो बेचैनी क्यों ?

हम अपना मन खुद बेचैन करते हैं,

फिर खुद ही मन से पूछते हैं,

तू बेचैन क्यों है ?

मन की बेचैनी मन का कारण है,

मन को चंचलता करने से रोक,

मन को सुकून मिल जाएगा,

मन की बेचैनी मन में ही समा जाएंगी,

ख़ुद मन को एक ख़ुशी का अहसास करा जाएगी ।।


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