मेरी दिल्लगी।
मेरी दिल्लगी।
मेरी दिल्लगी देखो आज मेरे काम आ गई।
मेरे नाम उनकी कई हसीन शाम आ गई।।1।।
पाना तेरा इत्तफाक ना था कोई भी मेरा।
यह मेरी ही दुआ है जो मेरे काम आ गई।।2।।
लूट कर लोगों को बनाते हो मालो-मकाँ।
झूठी है यह वसीयत जो तेरे नाम आ गई।।3।।
मेहमाँ तो बहुत थे महफिलें जाँ ना था कोई।
एक आमद से तेरी महफिलें शाम छा गई।।4।।
अच्छा किया तुमने उस टोकरी को खरीद कर।
बेचने वाली देखो मेहनत के सही दाम पा गई।।5।।
मेहनत बड़ी की है उसने मंजिल को पाने में।
ऐसे ही नहीं हस्ती उसकी यह नाम पा गई।।6।।
मजहब की नजर में कोई छोटा बड़ा ना होता है।
झूठे बेर खिलाकर साबुरी देखो राम पा गई।।7।।
मिटती नहीं है हस्ती दीवानों की दुनिया से।
मीरा की मोहब्बत देखो अपना श्याम पा गई।।8।।
भूल ना पाओगे तुम शहादत इन शहीदों की।
हस्ती भगत, आजाद की वह मुकाम पा गई।।9।।

