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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

जब भी मन उदास होता है

जब भी मन उदास होता है

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जब भी ये मन उदास होता है 

यादों का साया आसपास होता है 

तेरे खयालों में डूब जाता है दिल 

वो पल मेरा बहुत खास होता है 

खुलते बंद होठों की अनकही 

लरजते जिस्म की वो कंपकंपी 

उठती गिरती पलकों की सरगोशी 

उमंगों को व्यक्त करती तेरी हंसी 

मेरे इश्क की तरह लटका हुआ 

मेरी ही शर्ट पर तेरा वो एक बाल 

दिल की धड़कनें से झांकता तेरा हाल 

अपने खयालों में गुम सी तेरी चाल 

आलमारी में बंद कुछ मुस्कुराहटें 

ना जाने क्या कुछ कह जाती हैं 

कमरे में बिखरी हुई बेतरतीब धूल

तेरे स्वागत को आंखें बिछाती हैं 

शाम की तरह यादें स्वतः आती हैं 

मुझे बरबस तेरी पनाहों में ले जाती हैं 

अब तो सिर्फ यह देखना बाकी रहा है 

कि तू आती है या कि कयामत आती है।



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